Tuesday, May 18, 2010

बहुत ही लम्बी रात है

कोई सुबह होगी कहीं
रात की चादर के परे - कहीं दूर, बहुत दूर शायद
मेरी आँखों में पुरानी रोशिनी की याद से कुछ उजाला है
यूँ पता है मुझे उजाला दिखता कैसा था
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

यूँ धीरे धीरे कभी साँसे भी बंधने लगती हैं
यूँ लगता है की दिल भूल जाता है धड़कना
मैं जिंदा हूँ - जमी है ओस सी शीशे पे साँसे
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

सुनी था मैंने, कैसे सपने, सच भी हो जाते हैं
हर एक अहसास, हर एक आस, सपना बन गयी है
बे-जमीन ख्वाब बोने की क्या करते हो बातें?
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

न जाने क्या हुआ है आँखों को पड़ती नहीं है
अँधेरे की पड़े आदत अगर, शायद कुछ दिखे फिर
कोई सुबह होगी कहीं, रात की चादर के परे, कहीं दूर, बहुत दूर...
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

Sunday, May 16, 2010

आओ

तुम कौन हो
मेरी सुबह के पहले ख्याल
एक मुद्दत से ढूँढ रही हूँ तुम्हे
हवा से छु के अहसास होता था तुम्हारा कभी
चाहती हूँ उड़ कर हवा से
मेरे सामने इंसान बन, मेरी ही तरह - आओ
सपनों से थक गयी हूँ मेरी जान
अब तो सच हो जाओ..........

Saturday, May 1, 2010

Bird on a wire

If i spent an eternity,
sitting like a bird on a wire,
looking at the sky’s blue,
Will i know more, much more, than I do?

Will my heart fill with song,
will my life find meaning?
will I hear voices or will there be eternal peace?

How does the wind feel that high?
How does it feel to fly?
To fly and then to rest…
To fly and not run?

I look up and I keep looking up
at the bird and the sky
at the sky and the bird

And if I look long enough…
My breathing slows down

And I know that I know more…
Like the bird on the wire
looking at the sky’s blue,
I feel more, much more, than I do….