Tuesday, May 18, 2010

बहुत ही लम्बी रात है

कोई सुबह होगी कहीं
रात की चादर के परे - कहीं दूर, बहुत दूर शायद
मेरी आँखों में पुरानी रोशिनी की याद से कुछ उजाला है
यूँ पता है मुझे उजाला दिखता कैसा था
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

यूँ धीरे धीरे कभी साँसे भी बंधने लगती हैं
यूँ लगता है की दिल भूल जाता है धड़कना
मैं जिंदा हूँ - जमी है ओस सी शीशे पे साँसे
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

सुनी था मैंने, कैसे सपने, सच भी हो जाते हैं
हर एक अहसास, हर एक आस, सपना बन गयी है
बे-जमीन ख्वाब बोने की क्या करते हो बातें?
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

न जाने क्या हुआ है आँखों को पड़ती नहीं है
अँधेरे की पड़े आदत अगर, शायद कुछ दिखे फिर
कोई सुबह होगी कहीं, रात की चादर के परे, कहीं दूर, बहुत दूर...
बहुत ही लम्बी रात है
बहुत ही लम्बी रात है

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