Friday, April 30, 2010

सृस्ष्टि का अक्ष

यह क्या है हाथ में तेरे
मुझे लगता है कायनात भी
यूंही गढ़ी गयी होगी

मिट्टी नहीं
दुनिया सारी की सारी
एक केंद्र बिंदु से घूमने लगती है
वह सब जो हिल गया था
एकाग्र हो जाता है
जैसे सृस्ष्टि को फिर से अपना
अक्ष मिल गया हो

मैं घंटो लगातार इन हाथों को देख सकती हूँ
मेरे भीतर का कुछ भी ठहर सा जाता है
मन की स्थिरता समाधान ढूँढने बंद कर देती है और
खुद समाधान बन जाती है
मैं घंटो लगातार इन हाथों को देख सकती हूँ
चाक की मिट्टी पर ठहरे हुए हाथ
तेरे हाथ
जो कायनात रच रहे हैं...

मेरे दोस्त तू बहुत कुछ है मेरे लिए
मगर मुझे तुझसे प्यार नहीं है

तेरे हाथों से लेकिन प्यार हो ही गया है |

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