Monday, January 3, 2011

अनगिनत

कभी सवाल रुक भी तो जाते होंगे
अनगिनत अटके हुए अहसास किसी लहर के साथ धुल के कभी
बह जाते होंगे शायद

क्या किया करते हैं?
क्या किनारों पे खड़े होके कभी
लहरों का इंतज़ार करते हैं?
या डूबने की सोचे बिना कूद पड़ते हैं पानी में
कि तैरना वर्ना आएगा कैसे?
या फिर डूब कर फिर किनारों पर
या फिर डूब कर फिर - पानी में?
क्या? कब तक?
कहाँ गयी वह लहर
अब कब लौटेगी?
मैं कौन हूँ अब?
किसी किसी दिन सब समझ आता है
और कभी, कुछ भी नहीं
एक वह है जो मुस्कुरा के लहरों को यूँ देखती है
जैसे सारी सृष्टि की रचना समझ आती हो उसे
और एक वह है
जिसके सवाल ही खत्म नहीं होते
और इंतज़ार चला जाता है
चला जाता है...अंतहीन

अनगिनत अटके हुए अहसास किसी लहर के साथ धुल के कभी
बह जाते होंगे शायद....

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