Thursday, January 6, 2011

लिखो कोई, गीत नया

लिखो कोई, गीत नया
फिर हो सुबह, और रौशनी
खुद को कहो, मैं हूँ यहाँ
मैं हूँ यहाँ तो, क्या है कमी?

कितने वादे, खो गए हैं
और फिर लव्जों का इंतज़ार
जाने कहाँ तक दूंदते जाएँ
आँखें, बेक़रार

खुद से कोई, वादा करो
तुमको नभाना आता तो है
कोई नहीं तो फिर क्या हुआ
मैं हूँ यहाँ तो, क्या है कमी?

भागती सी दुनिया में, सामना करते हुए
थी तो खड़ी और हूँ भी खड़ी
यह की नज़र आऊँ मैं किसी और को
ऐसी कोई बंदिश तो कभी भी नहीं ही थी

खुद से कहो, कोई तो है
जिसको पता है, ठीक है सब
खुद को कहो यह बारिश यूँ है,
फसलें खिलें मन उपजाऊ हो

यूँ रूठी रूठी तो न ही रहो
खुद से कई सारी बातें करो
खुद को कहो, मैं हूँ यहाँ
मैं हूँ यहाँ तो, क्या है कमी?

लिखो कोई, गीत नया
लिखो कोई, गीत नया

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