Monday, January 3, 2011

रात के एक बजे

रात के एक बजे जब यह पता हो की सुबह
६ बजे होना ज़रूरी है
क्यों ज़रूरी है यह लिखना की 'आसान तो कुछ भी नहीं'
आज हिम्मत नहीं है, कल आ जाएगी
कल आएगी और परसों निकल जाएगी
और अगले दिन कुछ और कहानी होगी
खुद को कौनसी तरफ की बातें सुनाऊँ?
पता तो है
इस ओर यूँ खेलते हैं और उस ओर यूँ खेलते हैं
इन सब खेलों के बाहर रह कर
जैसे खुद की बनायीं कोई कठपुतली हूँ
तमाशा और तमाशबीन
वह जो डूब गया वह भी
और जो खड़ा रह वह भी
गोल गोल घूम के शब्द थक जा रहें हैं
अभी बस ४ मिनट पहले कहा था
कुछ भी आसान नहीं, फिर क्या हुआ?

छोड़ दो न अब
जाने भी दो.

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