Wednesday, March 3, 2010

मैं नहीं चाहती की मुझको तुम से प्यार हो

मैं नहीं चाहती की मुझको तुम से प्यार हो
न आज, न कभी और
मैं नहीं चाहती मुझे तुमपर विश्वास हो

मैं चाहती हूँ , मैं ढूँढ पाऊं अपने रास्ते और उनपर कहीं
मुझे वोह मिले जिसकी - तलाश थी हरदम
यूँ तुम मेरे सामने खड़े हो कर
मेरे रास्तों से खेल मत खेलो

कई बार बहुत प्यार करते करते
सब रास्ते बह जाने दिए
कभी सोचा ही नहीं, कि मुझे चाहिए क्या?
कब किसी और का ख्वाब मेरा हो गया...

बस हुए यह भ्रम, यह खेल, यह रिश्ते जहाँ से
कल फिर अधूरी झांकूंगी

मेरे मन में वोह विश्वास नहीं है जो मेरी आँखों में हो शायाद...
मैं यह किवाड़ खोल सकती नहीं
मैं नहीं चाहती की मुझको तुम से प्यार हो
न आज, न कभी और
मैं नहीं चाहती मुझे तुमपर विश्वास हो
मैं नहीं चाहती.. फिर भी..
बह जाने से पहले कि उथल पुथल ... कुछ याद तो है मुझको...

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