Monday, March 8, 2010

बिखरे कुछ ख्याल से

मेरी तस्वीर में ऐसा है तू
डूबते हुए सूरज
आसमान का रंग क्या था तब
और मेरे भीतर कौनसा रंग था?

कभी कभी और अक्सर
दोनों साथ साथ और दोनों सच
इतना बस की हर पल खुश नहीं होता
कभी कभी अक्सर रिश्ते टूट जाते हैं
कभ कभी अक्सर यह बुरा नहीं होता

अकेले रहने में और अकेलेपन में बहुत फर्क है
कोई अपने साथ न रहा पाए
थोड़ी मुश्किल है
किसी का साथ यूँ न मांग की अकेला है
यूँ मांग की साथ चाहिए उसका

हमे अक्सर तब कि जब ज़रा सा या ज्यादा शायद
अपने ही शब्द सुनाई देने लगते हैं
और मन में अनजानी सी
हिचक होती है
यह हैं भी और नहीं भी हम
तो खुद से दूर रह कर भी तो हो सकती हैं बातें

है कितना फासला और दूरियां कितनी पता ही क्या?
कभी तो सब ही पास हैं, कभी कोई नहीं है

हर एक शब्द, हर एक आह में तुम्हारी
यह सच है, थोडा तो तुम शर्माते हो
बस इतना हो कि तुमको पता हो कोई
कारण नहीं, कि शरमाया करो तुम
है तुम में कुछ भला सा यह पता है?
यह तुम हो, कोई तुमको
न चुरा सकता है
न बाँध सकता है
न बदल सकता है तब तक, जब तक तुम न चाहो
तुम खुद को पहन कर ख़ुशी से घूमों
भलापन पहने बिना भी, दीखता है...

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