Wednesday, March 3, 2010

सच?

मेरा मन फट पड़ेगा - उमड़ के दौड़ के जब प्यार मेरी ना सुनगा
मैं कब तक अपने दिल को बहाना दर दूँगी बहाना
यह सच है मैं नहीं चाहती हूँ तुमको
यह भी है सच कि मुझको प्यार तो है

मेरे बचपन के गीतों में तो देखो तुम नहीं हो
अगर यह प्यार है तो इस तरह मुझसे कभी पहले - मिला ही है नहीं यह
वोह सब जिसको मैं प्यार कहती हूँ -
यह वह तो नहीं है

मेरी आँखों में हो फिर भी क्यों तुम चाव्बीसों घंटे ?
यूँ आधा सा समय तो सोच के तुमको - मैं तुम पर और खुद पर - होती हूँ खफा ही
यह सोचा करती हूँ किस किस तरह, सही नहीं हम
मेरी आँखों में हो फिर भी क्यों तुम चाव्बीसों घंटे ?

मुझे ना पता है ना खबर है कि क्या सिला है
किसी ने उड़ के हवा से कुछ भी तो कहा नहीं इस बार...
मैं तुमको कैसे कह दूं, क्या कहूं तुमको बताओ?
यह सच है मैं नहीं चाहती हूँ तुमको
.
.
.
यह भी है सच कि मुझको प्यार तो है!

0 comments: