Saturday, March 6, 2010

तू मेरा होता क्या है?

कोई बता दे तो भला हो
तू मेरा होता क्या है?
तेरी परछाई सी महसूस हुआ करती है
कहीं सब बहसों से अलग
सब बातों से जुदा
उस सब से भी जुदा जो मैं खुद से कहा करती हूँ
तेरा इंतज़ार रहता है ...
यह इंतज़ार भी नहीं
कुछ इंतज़ार जैसा है
(अपनी परछाई से पूछ...
सब उसको पता रहता है...)

तू मेरा होता क्या है?

कुछ भी नहीं है कहने को
जो था कहा जा चुका सब
शब्दों के अंत है कहीं, और बहुत दूर भी नहीं..
डर सा लगा रहता है मुझे
कब शब्द सब झड जायेंगे?
जब शब्द यह होंगे नहीं,
क्या बात हम कर पायेंगे?
मुझको अभी हर हवा में
हर सांस में तू चाहिए
यह बीत भी जायेगा कल,
लेकिन अभी तो चाहिए....

देख खुशबू भी है बारिशों में
हवा में कुछ रंग है
मुझसे बिना बताये कुछ ....
पूछे बिना आना कभी
देख खुशबू भी है बारिशों में...

(and after at least one looong sigh)
महसूस होता है मुझे तू... महसूस होता है मुझे..

तू मेरा होता क्या है?

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