Monday, March 8, 2010

क्या कविताएँ मर जाती हैं?

क्या कविताएँ मर जाती हैं?

वक़्त बीत तो जाता है ही
लौट के भी आता तो नहीं है
पर हम तुम भी तो मर जाते हैं
कोई कहीं जाता तो नहीं है?

हाँ याद ढूँढने निकले एक दिन
कोई कहीं पर मिली कविता
थोडा हँसे और बोल लिए पर
कहाँ कहीं पर मिली कविता?

उस पल में छिप के बैठी है
जिस पल की प्रियसी हो बैठी
हम तो फिर भी चल निकले
यह - जीवन भर का प्यार करेगी..

देखो सारी आवाजें कहीं दूर निकल के जम जाती हैं
मैंने सुना था अन्तरिक्ष में - अंतहीन डोला करती हैं
हम तुम भी तो जी जाते हैं - मर के फिर से उठ जाते हैं
और वह सारे जो मर जाते हैं - वह भी कहो, कहाँ जाते हैं?

क्या कविताएँ मर जाती हैं?
हाँ कविताएँ मर जाती नहीं हैं..
नहीं सुनो, जीती रहती हैं
मरती रहती, जीती रहती हैं...
जीती रहती हैं... धीरे धीरे... धीरे धीरे

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