Monday, March 8, 2010

अब बस - चुप..

कोई और कुछ प्यार के काबिल नहीं है सच
छलावा है, यह खेल है, और वोह बातें सारी
जो सब दुनिया सुनाया करती है
जिसपर किताबें लिखी जाती हैं और नगमे कहे जाते हैं
फिल्मे बनायीं जाती हैं और
मुझ जैसे कुछ और भी महा मूर्ख
बहा करते हैं -
झूठ हैं

आप का कोई अस्तित्व नहीं है
आपकी भावनाओं का कोई मोल नहीं
आपके जीने या मर जाने से
किसी को कुछ भी नहीं

कर लीजिये महसूस, जो भी करना हो
लिख लीजिये चिठियाँ और कवितायेँ
या रो लीजिये, पकड़ पकड़ के दीवारें

कोई नहीं आ रहा
समझ नहीं आता तो कोई बात नहीं
फिर भी - कोई नहीं आ रहा
आ जायेगा समझ कुछ और गुस्से और आंसुओं के बाद

और फिर आप भी
बुत बन जायेंगे
देखी है न बुतों की दुनिया
खुद को छलावा देती हुई
या खुद से बात ही न करती दुनिया
है, क्योंकि है, और जीते जाएये

याद है कितनी घिन्न आती थी इन बातों से?
कितना गुस्सा की लोग जीते क्यों नहीं?
डरते क्यों है इतना?

आ जाईये अब चुपचाप
छोड़ दीजिये घमंड अपना
आप कुछ बहतर नहीं, अलग नहीं
बिलकुल बेबात, बेकार किसम के हैं
ज़रा ज़मीन पर उतरिये
वह देखिये उस लाइन में, बाएं से तीसरी जगह
वह आपके पुतले के लिए है

यह इंसान वाला झोला उतरिये
बढिए आगे

बहुत बोल चुके
अब बस
चुप..

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