Saturday, March 13, 2010

रेत का दाना

ज़िन्दगी और मौत - कभी सोचो
खाली पलों को
किनारे पे खड़े हो कर देखो
बह रही है नदी..
ज़िन्दगी

कभी खाली पलों में
भरा होता है इतना
कि लगता है भर के लम्हों को कुछ मन
खाली हो
लोगों से भरे कमरे अच्छे लगते हैं - और शांत
और खामोशी का शोर सहा नहीं जाता
ख्यालों कि भीड़ आती है लेकिन
कोई एक जो बात करे खुद से
बस वह ख्याल नहीं आता

हमेशा बह के पहुँचो या तैर के,
यह ज़रूरी नहीं है
कभी किनारों पे खड़े होकर
एक टक एक जगह
ज़िन्दगी
बह रही है

तुम्हे तो पता है यह
सांस लो
खुशबू है
आँखें बंद करो
रेत का हर दाना छूने लायक है, जीने लायक है...
क्या पता वह खाली या भरा लम्हा जो आज समझ नहीं आ रहा
कल याद आये...

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