The usage of the term "Ghadha" in a so-called poem!! WHAT?????
दोस्ती पर फर्क तो पड़ना ही था
तुम गधे हो अगर पता नहीं था तुम्हे
और तुम बहुत हवा में रहते हो
कुछ ज़मीन पे आओ, तो ज़मीं वालो का
अहसास होगा तुम्हे
मुह उठा के तुम्हे कुछ कह दूं अब?
जब कहने को कुछ है ही नहीं
कि सुबह हुई है और तुम्हारी याद आती है मुझे
तब जब की जानती हूँ लड़ के सोये हो
अभी तो दुश्मन हूँ न तुम्हारी, मैं दोस्त नहीं?
मुझे पता था तुम्हे समझ नहीं आएगा
मुझे खुद को समझने में भी तो देर लगी थी
यह वोह है ही नहीं जो हवाओं में भर के कायनात को भर देता है
मेरा जां, प्यार फिर भी है यह... याद करता है तुम्हे..
तुमसे पहले में यह सदी गली कविताये भी नहीं लिखती थी
जिनमे किसी को गधा कहना पड़े
पर तुम गधे हो तो कहो क्या करुँ
मैं मर जाओ कहीं जा के
जान मत खाओ.
Ok, this has to be the worst thing ever written, but it comes completely from the heart and I stand by every single stupid emotion! Oh well, what the heck!
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