Monday, March 8, 2010

तुममे कुछ है... जो मेरा है... सदा सदा के लिए...

तुममे कुछ है जो बहुत दूर है मुझसे
और तुममे कुछ वह भी है, बहुत पास है मेरे जो
जिसकी साँसे महसूस हुआ करती हैं बिलकुल वैसे
जैसे मेरी अपनी धड़कन..

तुममे कुछ है जो बहुत दूर है मुझसे
यह शायद वह है कि जिसको तुम, खुद के पास पाते हो
जो जाने-अनजाने 'तराश कर' खड़ा किया है तुमने
जो टूटेगा नहीं, बहकेगा नहीं, सही और गलत जानता है, वक़्त को पहचानता है, समझदार है

अपने सही गलत में नापा तुला, खुद को अकेला भी पता है तो
उसे पता है, उसका सही गलत ज्यादा ज़रूरी है
और निडर, बेधड़क दुनिया भर से लड़ कर, खड़ा रहेगा वह

उसका सच, उसको मिल ही जायेगा
वह सोचता है, मानता है, जानता है,
जीत जायेगा वह
हार मुमकिन ही नहीं... वह अपने डरों को यूंही नहीं भगा देता
जीत मुमकिन है, इसके कारण हैं,
मस्तिष्क मन से बलवान है, या फिर एक ही हैं दोनों
मन डरता है तो मन को डरा देता है
मन फिर रहता ही नहीं
चुपके चुपके से, मस्तिष्क की ढूँढ कर भाषा - कुछ कुछ कहा करता है - उन्ही दायरों में रह कर
मस्तिष्क को, डर जाना, हार जाना, खो जाना,
मंज़ूर नहीं है..
तुममे कुछ है जो बहुत दूर है मुझसे

और तुममे कुछ वह भी है, बहुत पास है मेरे जो
जिसकी साँसे महसूस हुआ करती हैं बिलकुल वैसे
जैसे मेरी अपनी धड़कन..
कभी तुम्हारी आँखों से झांकता है कभी
आवाज़ में सिहर सा जाता है
कभी हंसी में आ जाता है
कभी गुस्से पे छा जाता है
यह वह है
जो नहीं जानता
और जिसको 'न जाना' मंज़ूर है..
यह वह है जिसको समेट कर, सहेज कर, बहुत प्यार से जीना होगा
यह वह है कि मस्तिष्क तुम्हारा मानेगा ही नहीं, की है यह,
या इसके होने के पीछे की कहानियों और कारणों में खो देगा इसे
यह वह है, जो जाते जाते लौट आया था..

यह वह है
जो कहीं भीतर से थाम लेता है ....
जिसको आता है थाम लेना, बिना छुए , बिना कहे, बिना मांगे
मेरी रौशनी से इसकी रौशनी जगमगाने लगती है
इसकी रौशनी से मैं... जीने लग जाती हूँ
इसे सोच के, अटका रहता है आँखों में आंसूं कोई चाव्बीसों घंटे
मेरा नहीं है, इसका है, इसका नहीं है, मेरा है...

तुम चले जाओगे तो भी पास रहेगा
मैं चली जाउंगी, तब भी...
मेरा कुछ है जो अब हमेशा के लिए इसका है
इसका कुछ है, जो मेरा है सदा सदा के लिए

तुममे कुछ है... जो मेरा है... सदा सदा के लिए...

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