Monday, March 8, 2010

Feeling vulnerable...

What is most difficult is writing about things that makes one feel completely vulnerable. So, accepting something like I am scared of this time that is likely to come, when I wont be able to write may be (because the stitches in my hand might not allow me to), and scared of full days of nothing therefore... and then this absurd desire that I'd want someone around me all of that time [logically, it makes no sense because one its impossible, and two it might not be so bad after all, and three there will still be TV and resting and sleep and the phone for God's sake, but because I am scared and vulnerable, I want someone around - and I want a certain someone around more than others... even though I want the others too, but others I am able to say things to!) is very difficult. It doesn't make for nice words and if I have to be true to the feeling, I cant appear to be any stronger than I am feeling, and what I am feeling is pretty weak!

In English, I had written this last night, and I tried to write it in Hindi to see if it sounded any less terrible... it doesn't really! But I must share this with my "void" ... may be just that, will make me stronger!

What am I to do when I cannot write?
Will you spend time with me?
Will you? How much?
I will need to see you when I wake up and when I go to sleep and I do not ask
because nothing could be more unreasonable..
But would you hold my hand and sit at least?
Will you sit by me or lie with me as I sleep?

Am I fudging my desires
In some sort of rhythm?
And this is supposed to make a lier out of me?
And I could be true
Only if I asked
Asked the "impossible"
Out of you?

Yes this way I accept
'defeat' without a fight
I get defeated by both you and me
But there are so many battles
constantly being fought
So in just this one -
Wont you let me be?

Oh I know this is the most important one
I know it in every cell of my being
But who do I fight and fight for my love?
I was defeated before I'd begun.

तब क्या करूंगी जब
लिख नहीं पाऊँगी कहो?
क्या तुम बिताओगे मेरा समय?
सचमुच? कितना?
क्योंकि मैं देखना चाहूंगी तुम्हे तब जब आँखें खोलूं सुबह
और तब जब सोने जाया करूं
और मैं यह मांगती नहीं क्योंकि
यह कैसी बेसबब सी बात है
इससे ज्यादा बेमतलब शायद कुछ भी नहीं है
पर क्या कम से कम
मेरा हाथ थाम के बैठोगे?
क्या मेरे पास बैठोगे
या लेटोगे तब जब मैं सो रही हूँ?
सीधी सीधी भावनाओं की हिचक को बाँध कर
बहते हुए शब्दों में कहो
क्या मैं झूठी हो जाती हूँ?
और सच्ची बस तब
जब मैं मांगूं तुमसे
वोह - जो हो सकता नहीं?
हाँ इस तरह से बिना लड़े मैं हार जाती हूँ
मैं हार जाती हूँ तुमसे और खुद से भी
पर कितनी साड़ी लड़ाईयां हैं लगातार लडती हुई..
तोह क्या बस इस एक बार
यूँ ही नहीं छोड़ सकते?
हाँ मैं जानती हूँ यह लडाई
सबसे ज्यादा ज़रूरी है
मैं, मेरा हर कंड जानता है
पर मेरी प्यार बताओ मुझको
किससे लडूं और किसके लिए आखिर?
शुरुवात से बहुत पहले हार चुकी थी मैं...

तब क्या करूंगी जब
लिख नहीं पाऊँगी कहो?
क्या तुम बिताओगे मेरा समय?
सचमुच? कितना?
क्योंकि मैं देखना चाहूंगी तुम्हे तब जब आँखें खोलूं सुबह
और तब जब सोने जाया करूं
और मैं यह मांगती नहीं क्योंकि
यह कैसी बेसबब सी बात है
इससे ज्यादा बेमतलब शायद कुछ भी नहीं है
पर क्या कम से कम
मेरा हाथ थाम के बैठोगे?
क्या मेरे पास बैठोगे
या लेटोगे तब जब मैं सो रही हूँ?

सीधी सीधी भावनाओं की हिचक को बाँध कर
बहते हुए शब्दों में कहो
क्या मैं झूठी हो जाती हूँ?
और सच्ची बस तब
जब मैं मांगूं तुमसे
वोह - जो हो सकता नहीं?

हाँ इस तरह से बिना लड़े मैं हार जाती हूँ
मैं हार जाती हूँ तुमसे और खुद से भी
पर कितनी साड़ी लड़ाईयां हैं लगातार लडती हुई..
तोह क्या बस इस एक बार
यूँ ही नहीं छोड़ सकते?
हाँ मैं जानती हूँ यह लडाई
सबसे ज्यादा ज़रूरी है
मैं, मेरा हर कंड जानता है
पर मेरी प्यार बताओ मुझको
किससे लडूं और किसके लिए आखिर?
शुरुवात से बहुत पहले हार चुकी थी मैं...

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