Monday, March 8, 2010

वीरानी

याद आ रही है मुझे किसी की
पर किसकी मुझको याद नहीं
खालीपन है और थकान भी है
और फिर भी कुछ फ़रियाद नहीं

या फिर शायद फरियादें हों
पर फरियादों में शब्द नहीं
वैसे भी कहीं कोई शब्द नहीं
जहाँ हैं भी वहां भी शब्द नहीं

किसी परी-कथा का हिस्सा हूँ मैं
खुद अपना पता हूँ भूल गयी
इस जनम में किससे मिलना था
कब कौन कहाँ, सब भूल गयी

तेरा मुझसे वादा था तू
फिर मुझको ढूँढ निकालेगा
तू सामने भी पड़ जाये तो
तू कौन बता ? मैं भूल गयी...

शायद मेरी यादों में जब
एक टीस उठा करती है तब
शायद करती हूँ याद तुझे
शायद करती फ़रियाद तेरी
तू उसी समय का किस्सा है
तो तुझको तोड़ पता होगा
आ फिर से मेरी याद में आ
और खुद को कोई नाम तो दे
मैं कैसे तुझे पहचानू बता
तू ही मुझको पहचान ले
बड़ी वीरानी सी छाई है
और याद भी मुझको आई है
पर किसकी मुझको याद नहीं
पर किसकी मुझको याद नहीं...

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